अच्छे दिन का Lollypop

आज दीपावली है ही दीपावली 121 कोटी भारतीयों को  सुखी संपन्न और आनंदीत जिंदगी जीने के लिये सहाय्यपूर्ण रहे, यही उम्मीद....
चार्ल्स डिकन्स  नामका एक महान कविताकार इंग्लंडमे होकर गए. उन्होने Tale Of Two Cities इस नामकी एक काविता लिखी है. इस कविता की शुरुवात करतेहुए वो कहता है , की 'वो उत्कृष्ट समय था वो बहोत निकृष्ट समय था. जो बुध्दीमनों का युग था ; वो मुर्खता का युग था. वो कालखंड श्रद्धा का था; वो कालखंड अश्रद्धाका था. वह काल प्रकाश का था; वही अंधेरे का था. वो आशाओं का वसंतऋतू था; वही निराशा का ज्वलंतऋतू था. आपनेसामने कुछ था; आपनेसामने कुछभी नही था .हम सभी लोग सीधे स्वर्गमे जाने वाले थे ; हम सभी सीधे नरक मे जाने वाले थे .'
अर्थात, डिकन्सचके यह उद्गाहरण तत्कालीन फ्रेंच राज्यक्रांती संदर्भा में दिया है . पर परिस्थिती आजभी बदली नही है. तमाम भारतीयों को 'अच्छे दिन आयेंगे' यह आशावादी साद भरोसा देते हुए  नरेंद्र मोदी सत्ता पर आए. उसे भी  आज 5 महीने होने  वाले है. अच्छे दिन छोडो, कॉंग्रेस के काल मे जो हाल बरहाल सहन करते हुए सामान्य जनता जी रही थी , वे जीना भी सुसह्य होने के अलावा और भी दुसह्य कर दिया है. उदाहरण ही देना पडे तो , मधुमेह(डायबटीज) की जो दवाईया 5 महिने पहले ₹8000 मे आ रही थी , वो अब ₹1 लाखा से भी ज्यादा महंगी हो गई है. इस देशा के 10 करोड मधुमेह ग्रस्त रुग्णों के लिए अच्छे दिन है या की बुरे वो आप ही बताओं मित्रो. कैंसर की ₹8500 की औषधी अब ₹108000 तक जा पोहची है. ब्लड प्रेशरकी ₹147 की औषधी अब ₹1615 मे मिल रही है. ₹50 का डिजेल ₹70 तक बढ गई है. और कितना क्या कहें . मोदी साहब के अमेरिका दौऱे बाद ही यह सारी कीमते बढी है , यह बात खास है!
फिर हमारे तरह सामान्य लोगों को इस प्रश्न का सामना करना पड रहा है की, सरकार आखिर चला कौन रहा है? भारतवासियों ने चुनकर दिए हुए प्रतिनिधी या भारत और अमेरिका के भांडवलदार.. व्यापारी ? अच्छे दिन आखिर किसके आए है?
ग्लोबल वेल्थ इंडेक्स इनके 2014 के सर्वेनुसार अपने देश के 10% लोगों के पास74% संपत्ती एकतरफ है .
और 90% लोगों के पास सिर्फ26%संपत्ती है. प्रश्न ऐसा है की यह सरकार 10% वाले के लिए काम कर रही है या 90% लोगों के लिए . सरकार कॉंग्रेस की हो या भाजप की सामान्य जनता के जीवन मे कोई फर्क  पडने वाला नही, यह काळे पत्थरो की सफेद लकीर है , और कुछ फर्क पडा भी तो गरीब नागरीकों का जीना और भी कठीन हुआ यह फर्क देश की बहोत भोली -भाली गरीब जनता को जरूर पता चलेगा. यह लिखते हुए बहोत दर्द हो रहा है, पर ये सत्य है. इस  देश में कोई भी सत्ताधारी  कीसी भी पक्ष का शासन आए, फिर भी जनता के जीवन मे कोई बदलाव नही आएगा , कारण इस देश की सरकार सामान्य किसान-कष्टकरी-कामगार इनके मतों पर निर्वाचित होते है, यह काम सिर्फ टाटा-बिर्ला-अंबानी यही करते है, ये निर्विवाद सत्य आहे.
इसलिए डिकन्सके कहने के हिसाब से यह उत्कृष्ट काल है पर भांडवलदारा व्यापारीयों के लिए.. धनवानों के लिए.. माफिया.. मनुवाद्यो के लिए..
यह दिवाली भी ऐसे 10% लोगों के लिए समृद्धी लेकर आयी है, बाकि 90% लोगों की दिवाला कब का निकल चुका है....
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