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फ़रवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

देश को आज भी एक चंद्रशेखर आजाद की जरुरत है

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महान देशभक्त चंद्रशेखर आजाद 15 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद स्वतंत्रता संग्राम के अनन्य योद्धा के रूप में ख्याति प्राप्त किए थे। आजाद का जन्म 23 जुलाई को हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। अदालत में जज के प्रश्नों का उत्तर आजाद ने बड़ी निर्भीकता से दिया था। जज ने पूछा तुम्हारा नाम? जवाब था आजाद। उनके उत्तर से गुस्साए जज ने 15 बेंत मारने की सजा दी। प्रत्येक बेंत पड़ते ही आजाद भारत माता की जय तथा महात्मा गांधी की जय का उद्घोष किए। आजाद यह नारा तब तक लगाते रहे जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गए। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएँगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फाँसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए इसी पार्क में उन्होंने स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी। आजाद आजीवन ब्रह्मचारी रहे। आजाद का जन्म स्थान भाबरा अब 'आजादनगर' के रूप में जाना जाता है। जब क्राँतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े। रामप्

इन्सानों को कुचल कर विचारो को नही कुचला जा सकता

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कामरेड गोविंद पानसारे को लाल सलाम ........... मगर उनका ज़स्बा और विचारधारा अजर अमर है कामरेड मरते नहीं हैं दुश्मन ये जान ले ..... गोलियों से तेज चलते हैं विचार मैं घिरा हुआ हूं असंख्य आतताइयों से जो भून देना चाहते हैं मुझे पहले ही वार में , बारूद के असीमित जखीरे के मुकाबिल विचारों से लैस हूं मैं,यथासंभव । जंग जारी है विचार और औजार की हर मोर्चे पर सदियों से अनवरत,असमाप्य । मैं जानता हूं , कि ऊ र्जा हुए जाते हैं विचार ,और कहीं ज्यादा भयभीत हुए जाते हैं वो, जो छलनी कर देना चाहते हैं मुझे । पर मैं आश्वस्त हूं कि ऊर्जा अविनाशी है, और गोलियों से तेज चलते हैं विचार ..