भारतीय स्त्रीशिक्षण कि जन्मदाता क्रांतीज्योती सावित्रीबाई ज्योतीराव फुले को विनम्र अभिवादन....

सावित्रीबाई फुले का जीवन एक ऐसी मशाल है, जिन्होने स्वयं प्रज्वलित होकर भारतीय नारी को पही बार सम्मान के साथ जीना सिखाया। सावित्रीबाई के प्रयासों से सदियों से भारतीय नारियां जिन पुरानी कुरीतियों से जकड़ी हुई थी उन्होंने उन बंधनों से उनकों मुक्त कराया तथा पहली बार भारतीय नारी ने पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर खुली हवा में सांस ली। दलित व पिछडी जाति की महिलाओं को उनके सानिध्य में शिक्षा का अधिकार मिला। सावित्रीबाई के क्रांतिकारी प्रयासें से महाराष्ट्र में ही नहीं अपितु पुरे राष्ट्र में एक नई लहर जाग उठी। रूढि़यों से जूझने वाली साहसी सावित्रीबाई का जन्म 3.1.1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में नायगांव के छोटे से देहात में हुआ था। आपके पिता खंडोजी नेवसे पाटिल पेशवाकालिन ईमानदार कुलों में से थे। बचपन से ही समाज सेवा, धीर गम्भीरता तथा शूरता जैसे लोकोत्तर गुण आप में विद्यमान थे। ई.स. 1840 के शुभ मुहुर्त पर नायगांव में ज्योतिबा फुले तथा सावित्री बाई का विवाह सम्पन्न हुआ। आप दोनों की शादी में समाजोन्मुख दो महाशक्तियों का मिलन हुआ। तुफानों से टकराने की क्षमता व हर बाधाओं और संकट से लोहा लेने की सावित्रीबाई की वृति में महात्मा फुले ने अपना भरपूर सक्रिय सहयोग कर इस संपूर्ण राष्ट्र के भविष्य के युगप्रर्वतक, क्रांतिकारी का कल्पवृक्ष अंकुरित किया। पुरूष प्रधन भारतीय समाज के उस समय नारी, अज्ञान, कर्मकाण्ड, वर्णभेद, जाति-पाति, बाल विवाह तथा सती प्रथा आदि व्याधियांे से व्यथित थी। ऐसी स्थिति में नारी में उन्नति के लिए महात्मा फुले ने कन्या स्कूलों की स्थापना की। इसमें सगुणाबाई और सावित्रीबाई ने विद्यार्थी बनकर शिक्षा लेना प्रारम्भ किया। श्री फुले के अथक प्रयास व सावित्रीबाई की मेहनत रंग लाई और इन्होंने संपूर्ण शिक्षा प्राप्त की। इसी संस्था में महात्मा ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को अध्यापन व सेवाकार्य में लगा दिया। यहां से ही सावित्रीबाई ने प्रथम भारतीय स्त्री शिक्षिका बनने का ऐतिहासिक गौरव प्राप्त किया। इस क्रांति कार्य में आपकों प्रखर विरोध का सामना करना पडा, लेकिन सावित्रीबाई अपने अध्यापन के कार्य से विमुख न हो पाई। अपना तन, मन, धन इस राष्ट्र तथा नारी जाति के उद्धार हेतु लगा दिया। श्री फुले द्वारा स्थापित स्त्री शिक्षा का कार्य तेजी से फलने फुलने लगा। इस स्कुल की मुख्याध्यापिका सावित्रीबाई फुले को नियुक्त किया गया। इस प्रकार सावित्रीबाई ने अपना ज्ञानयज्ञ को सफल बनाकर देश के सामने एक नया आदर्श स्थापित किया इसलिए तो मेजर केन्डी तथा रे, रीण्डज जैसे अंगे्रज अधिकारियों ने भी सावित्रीबाई के इस कार्य की भूरी-भूरी प्रशंसा की है। सावित्रीबाई ने यह साबित किया है कि वही नवजागरण काल की प्रथम भारतीय समाज सेविका एवं शिक्षिका है जिसने आने वाली पीढी के लिए दीप स्तम्भ बनकर प्रदर्शन किया है। अस्पृश्यता उन्मूलन के क्रांतिकारी कार्यो को सावित्रीबाई ने पूरी तन्मयता से किया सावित्रीबाई ने यथार्थ की और ध्यान देते हुए स्त्री शिक्षा पर अत्यन्त बल दिया। सावित्रीबाई की कथनी और करनी में कोई भेद नहीं था। उन्होंने अस्पृश्यता निवारण को अपने कार्य को एक अभिन्न अंग माना था। अस्पृश्यता अन्मुुलन के साथ ही खेतिहर किसान, मजदूर-किसान की सेवा, बालविवाह प्रतिबन्ध, विधवा-विवाह को प्रोत्साहन सती प्रथा की रोकथाम, बाल-हत्या प्रतिबंधक, नारी शिक्षा आदि सामाजिक क्षेत्रों में क्रांति लाने के भरसक प्रयास किये।
1890 में महात्मा फुले का महानिर्वाण हो चुका था और पूरे सेवाकार्य का दायित्व सावित्रीबाई पर ही था। पति की मृत्यु से हिम्मत न हारी और न ही आहत होकर महात्मा फुले के अधुरे कार्यो को छोडा। उन्होने अपने जीवन का इसे सबसे बडा दायित्व समझकर पूरा किया। सावित्रीबाई एक प्रतिभा सम्पन्न कवयित्री, कुशल शिक्षिका निःस्वार्थी समाजसेविका और महात्मा फुले की मृत्यु के पश्चात सत्यशोधक समाज का नेतृत्व करने वाली महान नेत्री थी। सावित्रीबाई ने अपने साहित्य में नारी समता कुरीतियों एवं दलितोद्वार का चित्रण किया। सावित्रीबाई ने अथक परिश्रम और समाज सेवा के लिए 1852 में अंग्रेजी सरकार ने फुले दंपती को सम्मानित किया। सावित्रीबाई फुले ने अपने काव्य बावनकशी सुबोध रत्नाकर में पेशवायुगीन नारी की दीनहीन दशा को यतार्थ रूप में अंकित किया।
सावित्रीबाई ने नारी शिक्षा के कार्य में महात्मा फुले को जो योगदान दिया है वह अक्षुण्य है। अनादिकाल से समाज में परम्परागत रूढी परंपरा की जंजीरों को तोडकर नारी को मुक्ति दिलाना एक कठिन तथा ऐतिहासिक कार्य था जिसे करने में फुले दम्पती ने अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। ये दोनो एक दूसरे के पूरक थे फुले दम्पति गृहस्थी की गाडी के दो पहिए थे जो एक दूसरे के बिना अधुरे थे। नारी संबंधी समस्याओं के निराकरण हेतु आपने योजनाएं बनाई। सावित्रीबाई खुद निःसंतान थी फिर भी उन्होने विधवाओं की कोख से जन्मे अनेक बच्चों की माता बनकर उनका लालन-पालन तथा भरण-पोषण का महान कार्य किया। सावित्रीबाई ने नारी मुक्ति के लिए रूढियों का खंडन किया, सती प्रथा, विधवा मुण्डन का विरोध तथा विधवा विवाह का समर्थन किया, दीन, दलित स्त्रियों के लिए छोटे-छोटे उद्योगों की स्थापना की।
शैक्षणिक एवं क्रांतिकारी प्रयासों से नारी जाति इस पुरूष प्रधान राष्ट्र में आपके ही प्रयासो से आज अपना स्थान सुरक्षित रख पाई है। गुणों की भण्डार, उदारता की प्रतिमूर्ति एवं नारी की पथ प्रदर्शिका सावित्रीबाई जैसी प्रेरणा स्त्रोंत का 1897 में महानिर्वाण हो गया। इस तरह के महान कार्य करने के बावजूद सावित्रीबाई आज तक इस देश में अपरिचित ही रही है। आज  समस्त नारी शक्ति को यह संकल्प लेना चाहिए कि सावित्रीबाई के नारी समता, कुरीतियों एवं भारती समाज के लिये दिए महत्वपूर्ण योगदान  के गुणों को सबके सामने लाएगी यही उनके लिये सच्ची श्रद्धांजली होगी।

शाम गौड़ 
छत्रपति युवा फ्रंट

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