SRG रचित कविता वो मेरे भीम थे !

अंग्रेजों के शासनकाल में इस देश मे जो शतकों से गुलामों के भी गुलाम थे ऐसे समाज को गुलामी से आजाद करने वाले हमारे भीम थे!
जब मनुवाद,जातियवाद, स्त्री असमानता,गुलामी की आग में  जलकर फसा पड़ा था देश मेरा ..
उस वक्त कोयलों को इंसान बनाने वाले मेरे भीम थे !
दबाई जा रही थी इस देश मे ना जाने कितने सैकड़ों माँ बहन बेटिओं की आवाजें हिन्दू कोड बिल ला कर बुलंद उनकी आवाज कर दिखाने वाले मेरे भीम थे...
जकडे हुये किसान थे सरकार सवकारों की जुल्म सितम की बेड़ियों में जब..
बेड़ियों को तोड़ कर उम्मीदों का पर लगाने वाले मेरे भीम थे!
शिक्षा व पानी पीने का हक ना था सवर्णो द्वारा धिक्कारे हुए कौमों को उनके हक्क के खातिर सत्याग्रह कर समानता हक दिलाने वाले मेरे भीम जी थे..
युवा व मजदूर पिछड़े वर्गों उन्होंने नई रोशनी दिखाई है.
सीखो- संगठित बनो -संघर्ष करो की राह दिखाई है..
33 करोड़ देव सदियों से जो कभी ना कर सके..
हमारे बाबासाहेब ने वो क्रांति बदलाव की मशाल चंद सालों  में जलाई है!
शाम कहता है और मैं लिखू भी कैसे उस महान मानव के इतने किस्से है कहु भी कैसे..बिना बोले मैं चुप रहु भी कैसे..
अब कहते है फिरसे लौट जाओ उन तलवार  और तीरों को..
खाने की बात नही है जख्मी करना बाबासाहेब के वीरों को.
है मुझे गर्व साफ दिल से मैं कहता हूं बाबासाहेब के संविधान पे चलने वाले देश में रहता हूँ
आगे जारी ... 1/2

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